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बच्चों का मन पढ़ाई में कैसे केंद्रित करें? | Bachhon ka mann padhai mein kaise kendrit karein? | How to make children focus on studies during pandemic?


महामारी/pandemic के इस मुश्किल दौर के चलते देश/ दुनिया में जो माहौल बना हुआ है इससे हम में से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। बच्चों का बचपन घर की चारदीवारी में कैद हो गया है। उनकी मासूमियत भरी शरारतें, आजादी मानो छिन गई हो। चौबीसों घंटे मोबाइल, लैपटॉप जैसे इलैक्ट्रोनिक उपकरणों से घिरे रहना वर्तमान समय की जरूरत बन चुकी है। इस मुश्किल समय के चलते बच्चों का मन पढ़ाई में कैसे केंद्रित करें माता-पिता/पेरेंट्स के लिए चुनौती बन गया है। वैसे तो हर बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होती है और प्रथम गुरु उसके माता-पिता।  
यहीं से शुरू होती है उसके ज्ञान अर्जित करने की प्रक्रिया। ज्यादातर माता-पिता की शिकायत रहती है कि बच्चे पढ़ाई में फ़ोकस नहीं कर पा रहे उनका मन पढ़ाई में कैसे केंद्रित करें। बच्चों का कहना है कि वे पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन जैसे ही पढ़ने बैठते हैं उनके मन में कुछ इस तरह के विचार आते जाते हैं जिनकी वजह से वे पढ़ाई में फ़ोकस नहीं कर पाते। थोड़ा बहुत यदि बच्चे का मन पढ़ाई से भटकता है तो यह स्वाभाविक है लेकिन यदि बच्चे पढ़ ही नहीं पाएं तो माता-पिताा /पेरेंट्स के लिए यकीनन चिंता का विषय बन जाता है। 

Wazobiana का यह आर्टिकल  सौ-फीसदी माता-पिता और बच्चों की परेशानी  दूर करने में सहायक सिद्ध होगा।  इस में हर उस समस्या पर प्रकाश डाला गया है जिसकी वजह से अनेकों माता-पिता अपने बच्चों का मन पढ़ाई में न लगा पाने की वजह से परेशान हैं। पूरा लेख पढ़ने के बाद भी यदि माता-पिता या बच्चों के मन में कोई सवाल हों तो बेझिझक कमेन्ट करके पूछ सकते हैं। हम आपके द्वारा पूछे गए सवालों का उत्तर देने में गौरवान्वित महसूस करेंगे  (with the help of this unique article parents will get to know how to make children focus on studies during this pandemic)। इस लेख में तीन मुख्य पहलुओं पर फ़ोकस किया गया है:

1) बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित क्यों नहीं होता?
2) बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित करने के आसान उपाय/तरीके।
3) माता-पिता/पेरेंट्स के लिए आवश्यक संदेश।

1.  बच्चों का मन पढ़ाई में क्यों नहीं केंद्रित होता:
     
बच्चों का मन पढ़ाई में क्यों नहीं केंद्रित होता इसके पीछे निम्न कारण हो सकते हैं-

  • माता-पिता द्वारा बच्चे की मन: स्थिति न समझ पाना।
  • उपयुक्त वातावरण का न होना।
  • घर में लगातार म्यूजिक या टीवी की आवाज़ आना।
  • बच्चे में हाइपरएक्टिविटी डिस्आडर/hyperactivity disorder का होना। इसमें बच्चा सामान्य तौर पर पढ़ई में concentrate नहीं कर पाता।
  • बच्चे की नींद पूरी न होना।
  • सामान्य तौर पर बच्चे का दीमाग तेज न होना।
  • भावनात्मक तौर पर कमज़ोर होना। जिन बच्चों के माता-पिता का आपस में लड़ाई - झगड़ा होता है ऐसे माहौल में बच्चे भावनात्मक रूप से डरे-सहमे एवं कमज़ोर महसूस करते हैं।
  • माता-पिता द्वारा छोटी-छोटी गलतियों के लिए डांट-फटकार लगाना।
  • पढ़ाई के लिए कोई निश्चित स्थान न होना।
  • पौष्टिकता की कमी के कारण भी बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित नहीं हो पाता।

बच्चों का मन पढ़ाई में क्यों केंद्रित नहीं होता इसके कारण जान लेने के बाद अब हम जान लेते हैं कि बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित करने के आसान उपाय/नुस्खे क्या हैं:

2.  बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित करने के आसान उपाय/तरीके How to make children focus on studies (easy tips):

1)  पौष्टिक आहार (nutritious food): बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित करने के लिए पौष्टिक आहार (nutritious food) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अक्सर देखने में आता है कि जो बच्चे जंक फूड ज्यादा खाते हैं उनका मानसिक विकास उतनी तेजी से नहीं होता और ऐसे बच्चे कई तरह की बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। पौष्टिक आहार बच्चों के मानसिक विकास की प्रथम सीढ़ी की भूमिका अदा करता है। देखा गया है कि जो बच्चे फ़ल, हरी सब्जियां, दालें इत्यादि भरपूर मात्रा में नहीं खाते मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं चुस्त-दुरुस्त महसूस नहीं करते, इम्यून सिस्टम कमज़ोर (weak) हो जाता है।  यही कारण है कि ऐसे बच्चे पढ़ाई में मन केंद्रित नहीं कर पाते। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों की पौष्टिकता का ध्यान रखें ताकि वे मन पढ़ाई में केंद्रित कर सकें।

2)  व्यायाम की आदत:  नियमित व्यायाम करने से बच्चों का मन शांत, शरीर सुडौल एवं चुस्त-दुरुस्त बना रहता है वे हर समय तरोताजा/एक्टिव बने रहते हैं। माता-पिता को चाहिए कि यदि बच्चा पढ़ाई में मन केंद्रित नहीं कर पा रहा है तो उसे खेल-कूद प्रतियोगिताओं और हर रोज़ व्यायाम के लिए प्रोत्साहित करें जिससे उसका मन पढ़ाई में भी खूब लगेगा।

3)  पढ़ाई के लिए सही एवं निश्चित जगह का चुनाव:  बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित करने के लिए पेरेंट्स सुनिश्चित करें कि घर में एक ऐसी परमानेंट जगह हो जहां बच्चा हर रोज़ बैठकर शांति से पढ़ाई कर सकें। उसकी जरूरत का सारा सामान जैसे किताबें, काॅपी, पेंसिल, शार्पनर, रबर इत्यादि हर चीज़ टेबल पर रखा हो ताकि जरूरत पड़ने पर बिना डिस्ट्रैक्शन के यूज़ किया जा सके। बार-बार पढ़ने का स्थान बिल्कुल न बदलें। यह भी ध्यान रखें कि जब बच्चा पढ़ रहा हो तो उसके आस-पास टैलिविज़न या म्यूज़िक का शोर न हो और न ही पेरेंट्स या घर का कोई और सदस्य ऊंची आवाज़ में बात करे। जब बच्चा शांत माहौल में हर रोज़ एक निश्चित जगह बैठकर पढ़ाई करेगा तो यकीनन अपनी स्टडीज़ में फ़ोकस कर पाएगा।

4)  नियमित रूप से पढ़ाई करना आवश्यक:  किसी भी चीज़ में महारत हासिल करने के लिए अनुशासन और नियमितता का होना अति अनिवार्य है। जब हम किसी कार्य को नियमित रूप से करते हैं तो हमें उस कार्य को करने की आदत हो जाती है। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को हर रोज़ नियमित रूप से थोड़ी-थोड़ी देर पढ़ने की आदत डालें। बाद में पढ़ाई का समय बढ़ाया जा सकता है।

5)  सोने और जागने का समय निश्चित करें:  बच्चों का मन पढ़ाई में केंद्रित न हो पाने का एक मुख्य कारण यह भी है कि आजकल बच्चे देर रात तक मोबाइल फोन, लैपटॉप पर कुछ न कुछ करते रहते हैं जिसका नतीजा होता है नींद पूरी न होना। पेरेंट्स को चाहिए कि बच्चों को रात में जल्दी सोने की आदत डालें ताकि वे भरपूर नींद लें और हर सुबह तरोताज़ा उठकर अपना हर कार्य मन लगाकर कर सकें।

6)  पढ़ाई का समय निश्चित करें:  माता-पिता बच्चों को समय का महत्व बताते हुए उनका पढ़ने का समय निश्चित करें। शुरू-शुरू में बच्चा आनाकानी ज़रूर करेगा कि अभी नहीं थोड़ी देर में पढुंगा या कल पढुंगा इत्यादि। बच्चा है उसका ऐसा करना स्वाभाविक है। ऐसे में पेरेंट्स उसे कुछ कामयाब हस्तियों के जीवन के बारे में बता सकते हैं कि अगर उन्होंने पढ़ाई नहीं की होती या आज का काम कल पर डालते जाते तो आज शायद वे उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते। बच्चे कहानियों में अपने आप को रिलेट करने लगते हैं।

7)  शांत मन से पढ़ाई करें:  बड़ों की तरह बच्चों का भी कई बार मन अशांत हो सकता है उनके मन में भी अनेकों विचार आते हैं ऐसे में पेरेंट्स उन्हें डांट-फटकार कर जबरदस्ती पढ़ने के लिए न कहें। पहले तो प्यार से उनके अशांत होने का कारण जानने की कोशिश करें फिर पास बिठा कर कुछ इस तरह उदाहरण दे कर उनके मन में चल रही कशमकश को सुलझाने की कोशिश करें-  एक टोकरी में कुछ विभिन्न प्रकार के फ़ल रखें अब बच्चे से कहें कि इस में से अपनी पसंद का खिलौना/toy निकाल कर दिखाए।  अब बच्चा बहुत ही हैरान होकर आपको देखेगा और कहेगा कि फ़लों की टोकरी में से खिलौना कैसे निकलेगा बस यहीं आपने उसे समझाना है  कि फ़लों की इस टोकरी की तरह जो हमारे अंदर होता है वही बाहर आता है। यदि हम अपने मन/दीमाग मेंं गुस्सा, द्वेष, चिड़चिड़ापन, फ़ालतू के विचारों को भर कर रखेंगे तो वक्त वे वक्त वही बाहर आते रहेंगे और हम अपने लक्ष्य को हासिल करने में असमर्थ हो सकते हैं। अतः जितना हम अपने मन को शांत रख कर पढ़ाई करेंगे उतनी ही तेजी से अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे।

8)  अपनी समस्या और सही-ग़लत की पहचान के लिए स्वयं से प्रश्न पूछें:  बच्चा अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जो करता है जैसे कब सोता है, कब जागता है, कब पढ़ता है, कितना पढ़ता है, कब खेलता है, कब दोस्तों से मिलता है, किन दोस्तों से मिलता है, कब पढ़े हुए अध्याय को रिवाइज़ करता है, खाली समय में उसके दीमाग में किस तरह के विचार आते हैं इत्यादि। जब वह अपने से रिलेटिड/related हर चीज़ का प्रश्न स्वयं से करेगा तो धीरे-धीरे उसे उसके प्रश्नों के उत्तर मिलते चले जाएंगेे और सही ग़लत में अंतर करने में भी सक्षम हो जाएगा। बच्चे के अभिभावक भी उसे कॉन्फिडैंस (confidence) में लेकर उसके मन में क्या कुछ चल रहा है, उसकी समस्या क्पा है, साथ मिलकर समाधान कर सकते हैं। जब उसे अपने सवालों के जवाब और समस्या का हल मिल जाएगा तो स्वाभाविक रूप से सही और ग़लत में अंतर कर अपना मन पढ़ाई में केंद्रित कर पाएगा।

9)  समय की अहमियत समझें और समय के साथ चलना सीखें:  बच्चों को उनके उज्जवल भविष्य/bright future के लिए, जीवन में कुछ कर दिखाने के लिए समय का सदुपयोग  करना एवं बहुत जरूरी है समय के साथ चलना। जो समय की कद्र करते हैं अपने रोज़ के कार्य बिना आलस्य के कंप्लीट करते हैं वक्त भी उनके साथ देता है। जब भी बच्चा पढ़ने के लिए स्ट्डी टेबल पर बैठे तो सबसे पहले अपना टाइम टेबल सेट कर ले। कौन सा विषय पहले व कौन सा बाद में पढ़ना है एवं किस विषय को कितना समय देना है पहले ही सुनिश्चित कर लें। ध्यान रखें अपने द्वारा अपने से ही किए गए वादे पर अड़िग रहें। पढ़ाई पूरी करके ही स्ट्ड़ी टेबल छोड़ें। पेरेंट्स भी बच्चों को उदाहरण देकर समय की अहमियत एवं समय के साथ चलने से होने वाले फायदों के बारे में बता सकते हैं।

10)  पढ़ाई शुरू करने से पहले संकल्प अवश्य लें:  बच्चे जब भी स्ट्डी टेबल पर बैठें पढ़ाई शुरू करने से पहले संकल्प अवश्य लें कि आज मैंने इस सब्जैक्ट का इतना पोर्शन कंप्लीट करना है। ध्यान रखें एक समय में एक ही कार्य करें उसे पूरा करके फिर दूसरा शुरू करें। ऐसा करने से बच्चों का मन पढ़ाई में पूरी तरह से केंद्रित हो पाएगा। Children can focus more efficiently in their studies.

11)  नोट्स बनाना ज़रूरी:  जिस भी विषय का अध्ययन कर रहे हों साथ ही साथ चैप्टरवाइस इंपॉर्टेंट पॉइंट्स लिखते जाइए व नोट्स अवश्य बनाइए। इन्हें अपनी अलमारी में या स्ट्डी टेबल पर ही सलीके से अरेंज कर के रखें ताकि बाद में जब भी रिवाइज़ करने लगो तो नोट्स ढूंढ़ने में समय बर्बाद न हो। याद रखें एक-एक मिनट क़ीमती है। 

12)  दोस्तों का चयन समझदारी से करें:  जीवन में कुछ ऐसे दोस्त अवश्य रखें जिनसे बात करके आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो और ऐसे दोस्तों से हमेशा दूरी बनाकर रखें जिन्हें आपकी भावनाओं की कद्र ही न हो। अगर बच्चा पढ़ाई में मन केंद्रित नहीं कर पा रहा हो तो पेरेंट्स/अभिभावक उसके दोस्तों के बारे में और स्कूल में सहपाठियों के बारे में भी जानकारी अवश्य रखें कि कहीं कोई उसे बुली/bully तो नहीं करता, ऐसे केसिस/cases आजकल स्कूलों में अक्सर मिलते हैं। अगर ऐसा है तो एक बार उसके स्कूल जाकर इसकी जानकारी टीचर को अवश्य दें। 

13)  माता-पिता/अभिभावक बच्चों की बातों को ध्यान से सुनें:  माता-पिता के लिए यह सबसे इंपॉर्टेंट/आवश्यक है कि जब भी बच्चा उन्हें कुछ बताता है या बताने की कोशिश करता है तो उसकी बातों को कभी भी अनसुना न करें बल्कि ध्यान से सुनें। लेकिन यदि बच्चा उन्हें अपनी दिनचर्या जैसे कि दिन में उसने क्या किया, स्कूल में क्या किया, टीचर ने क्या कहा, उसने खाना खाया या नहीं, किन बच्चों के साथ खेला, होमवर्क किया या नहीं इत्यादि के बारे में नहीं बताता तो पेरेंट्स उसे पास बिठाकर प्यार से हर बात की जानकारी लें। कभी भी उसकी बातों को अनदेखा या अनसुना यह सोच कर न करें कि बच्चा ही तो है इसकी बातें सुनने का क्या मतलब यदि ऐसा करते हैं तो वे बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हैं। जब बच्चे की बातें उसके माता-पिता द्वारा नहीं सुनी जातीं तो उसके अंदर चल रही कशमकश व कोमल मन में उठ रहे अनगिनत सवाल उन के लिए भयानक परेशानी का कारण बन सकते हैं। अतः आप कितने भी व्यस्त क्यों न हों समय निकाल कर बच्चों की बातें जरूर सुने और उनके सवालों का हल निकालने में मदद करें। ऐसा करने से बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ एवं खुश महसूस करेंगे और बिना किसी स्ट्रैस/stress के अपना मन पढ़ाई में केंद्रित कर सकेंगे।

14)  एकाग्रचित्त होकर भविष्य को ध्यान में रखते हुए पढ़ाई करें:  बच्चे कितनी लग्न व एकाग्रता से पढ़ाई करते हैं उसी पर उनका आने वाला कल, उनका भविष्य निर्भर करता है। यदि बच्चे को स्ट्डी टेबल पर लंबे समय तक बैठना सुविधाजनक नहीं लगता तो उसका टाइम टेबल इस तरह सैट करें जिससे वह बीच-बीच में थोड़ा ब्रेक ले कर कंफर्टेबल महसूस करें। बच्चा कभी भी पढ़ाई को बोझ न समझे। यदि वह अपना मन पढ़ाई में केंद्रित नहीं कर पा रहा हो तो थोड़ी देर अपनी आंखें बंद करके अपने ही द्वारा देखे गए उज्जवल भविष्य के सपने और अपने निर्धारित  लक्ष्य तक कैसे पहुंचना है के बारे में सोचना शुरू कर दें।  धीरे-धीरे उसके दीमाग में चलने वाले फ़िज़ूल के विचारों से राहत मिलेगी। एकाग्रचित्त होकर भविष्य को ध्यान में रखते हुए जब बच्चे पढ़ाई करेंगे तो उनका मन पढ़ाई में भी केंद्रित होगा और उज्जवल भविष्य का सपना भी साकार होता हुआ नजर आएगा।

15)  घर में माहौल ठीक रखें:  बहुत से बच्चे शिकायत करते हैं कि वे पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन जैसे ही पढ़ने बैठते हैं उनका मूड खराब हो जाता है। ऐसा क्यों होता है हमें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए। माता-पिता/अभिभावक सुनिश्चित करें कि जब बच्चा पढ़ने बैठता है तो उसे किसी चीज से डिस्टर्बेंस तो नहीं हो रही। मसलन कुछ घरों में मेहमानों का आना-जाना बहुत होता है मां हर समय उनकी आवभगत में लगी रहती है पूरा-पूरा दिन व्यस्त रहती है। बच्चे को पढ़ाई के संदर्भ में अगर कुछ पूछना हो तो माता को घर के कामों में व्यस्त और मेहमानों से घिरा देख नहीं पूछ पाता और धीरे-धीरे उसका मन पढ़ाई से हटता जाता है। कुछ घरों में पेरेंट्स के आपसी झगड़े की वजह से भी बच्चा पढ़ाई में मन नहीं लगा पाता। कहने का तात्पर्य है कि अगर आपका बच्चा पढ़ाई करने में आनाकानी कर रहा हो या वह पढ़ाई तो करना चाहता है लेकिन कॉन्सन्ट्रेट नहीं कर पा रहा हो तो बच्चे को ही पूरा दोष मत दीजिए बल्कि उसके पीछे का कारण क्या है उसे ढूंढ निकालिए। घर में माहौल ठीक रखिए, बच्चे की भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए और जितना हो सके उसे वक्त दीजिए।

16)  छोटी-छोटी उपलब्धियों पर बच्चों को अप्रिशिएट/appreciate करें:  छोटी से छोटी जीत भी बच्चों के लिए बहुत मायने रखती है। उनकी उसी जीत पर पेरेंट्स कैसे रिएक्ट करते हैं इसका उनके कोमल मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनकी किसी भी उपलब्धि पर माता-पिता से मिली हुई शाबाशी उनके काम या पढ़ाई करने की क्षमता को दोगुना कर देती है। उनके मनोबल में वृद्धि होती है और अपने हर कार्य को पूरी हिम्मत व लग्न से करने की प्रेरणा मिलती है। यदि बच्चे से कोई ग़लती हो जाए तो उसे किसी के भी सामने खासकर उसके दोस्तों के सामने डांट-फटकार न लगाएं। अपने पास बिठा कर उसके द्वारा की गई ग़लती का एहसास दिलाएं, उससे होने वाले परिणामों से अवगत करवाएं और भविष्य में दुवारा ग़लती न करने के लिए प्रेरित करें। पेरेंट्स जब बच्चे की उपलब्धियों पर उसे अप्रिशिएट/appreciate करते हैं, उसके द्वारा की गई ग़लती का उसे एहसास दिलाते हैं तो बच्चा हर वह चीज़ दिल से करना चाहेगा जिससे वह माता-पिता की अपरिशिएशन पा सके फिर चाहे खेल कूद हो, घर के छोटे-मोटे कामों में भाग लेने की बात हो या फिर मन लगाकर पढाई करना।

17)  आलस्य त्यागें:  बच्चे पढ़ाई में मन तो केंद्रित करना चाहते हैं लेकिन आलस की वजह से कई बार आज का काम कल पर छोड़ देते हैं और दूसरे दिन फिर वही हाल। नतीजा पढ़ाई का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला जाता है और बाद में परेशान हो जाते हैं। उन्हें चाहिए कि अपने ब्राइट फ्यूचर/उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखते हुए आलस्य त्यागें, जमकर मेहनत करें, आज का काम कल पर बिल्कुल न छोड़ें और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अनुशासन के साथ अपना मन पढ़ाई में केंद्रित करें।

18)  रात को सोने से पहले चिंतन अवश्य करें:  बच्चों को यह बात हमेशा स्मरण रहे कि उन्होंने दिन भर क्या-क्या किया, उसके अतिरिक्त और क्या कर सकते थे।  रात को सोने से पहले चिंतन अवश्य करें कि उन्होंने अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए जो योजनाएं बनाई हैं क्या उन तक पहुंचने के लिए वे जो प्रयास कर रहे हैं पर्याप्त हैं या फिर अतिरिक्त मेहनत/efforts करने की ज़रूरत है। जब बच्चे अपने भविष्य के बारे में सोचना शुरू करते हैं और उस दिशा में डटकर मेहनत करते हैं तो उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।

3. माता-पिता के लिए आवश्यक संदेश:  यदि बच्चा पढ़ाई में मन केंद्रित/कंसंट्रेट नहीं कर पा रहा है तो माता-पिता का परेशान होना, चिंता करना स्वाभाविक है लेकिन रात-दिन चिंता करने के बजाय अगर निम्न बातों पर ध्यान दें तो बच्चों की इस परेशानी को दूर करने में कामयाब हो सकते हैं-

  • बच्चा यदि कमज़ोर है तो माता-पिता का भावनात्मक रूप सेे उसे सपोर्ट/करना अत्यंत आवश्यक है।
  • बच्चे की तुलना उसके सहपाठियों या दूसरे बच्चों से बिल्कुल न करें।
  • बच्चे की मानसिकता को समझने की कोशिश करें।
  • बच्चे को जंक फूड से दूर रखें व पौष्टिक आहार लेने से होने वाले फायदों से अवगत करवाएं। कभी-कभी जंक फूड खिलाया जा सकता है।
  • रात में बच्चे को जल्दी सोने की आदत डालें।
  • नियमित रूप से व्यायाम करने को कहें।
  • समय का सदुपयोग करना सिखाएं।
  • बच्चे को अनुशासन में रहने के लिए प्रेरित करते रहें और स्वयं भी अनुशासित रहें ध्यान रहे बच्चा अच्छे-बुरे संस्कार/अनुशासन में रहना  ज्यादातर माता-पिता से ही सीखता है अतः हर बात के लिए बच्चे को ही दोषी बिल्कुल न ठहराएं।
  • घर का माहौल ऐसा रखें कि बच्चा अपने मन की बात निर्भीकता से आपके सामने रख सके।
  • बच्चों को समय-समय पर कहानियों के माध्यम से उदाहरण देकर प्रोत्साहित करके उनका हौसला अफजाई करते रहें।
  • उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें नकारात्मकता से दूर रखें।
  • बच्चे को होमवर्क करवाते समय या उसके कुछ पूछने पर गुस्सा न करें।
  • माता-पिता या घर का कोई भी सदस्य बच्चों के सामने कभी भी अभद्र भाषा का प्रयोग न करें।
  • बच्चे की संगत पर पैनी नज़र बनाए रखें।
  • ध्यान रखें बच्चा स्कूल में सहपाठियों द्वारा बुली तो नहीं किया जा रहा।
  • समय-समय पर पेरेंट्स टीचर मीटिंग ज़रूर अटैंड करें व टीचर से बच्चे की ओर एक्सट्रा ध्यान देने के लिए रिक्वेस्ट करें।

हमारे बच्चे देश की नींव हैं और मजबूत नींव पर ही देश के उज्जवल भविष्य का सपना साकार हो सकता है। आज जब पूरी दुनिया कोविड जैसी पैंडैमिक/महामारी से जूझ रही है तो हर माता-पिता के लिए स्वयं के साथ-साथ बच्चों को इस महामारी से सुरक्षित रखना किसी चुनौती से कम बिल्कुल नहीं है। इसी विषय पर हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी समय-समय पर मन की बात में देश को संबोधित करते हुए ऑनलाइन बच्चों से रूबरू होकर उनका हौसला-अफज़ाई करते हैं और उन्हें इस मुश्किल घड़ी में अपनी सोच को दूरदर्शी एवं सकारात्मक रखने के टिप्स भी देते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी बच्चों से आग्रह करते हैं कि बच्चे अपने बारे में, अपने भविष्य के बारे में, देश के बारे में सोचें, कुछ बड़ा सोचें और उसे पूरा करने में हमेशा प्रयासरत रहें। इससे उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाबी ज़रूर मिलेगी।
   










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