हमारे पूर्वजों/पितरों की कहानी मेरी ज़ुबानी | Hamare purvajon/pitron ko Sharadhon main hi kyun yaad karein ham | Poem on Ancestors Hindi
'वज़ोबिआना' Wazobiana के इस लेख में आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों/पितरों की कहानी मेरी ज़ुबानी !
सिर्फ श्राद्धों में ही क्यों याद करें हम,
आज भी जिंदा हैं वो हमारी स्मृतियों में हम सब के बीच
"एक मधुर याद बनकर"
प्रथम नमन है उनको मेरा जिन्होंने हमें संसार दिखाया !
स्वयं मिट्टी के घरौंदों में रहकर
हमें स्वच्छंद, उन्मुक्त गगन में उड़ने का हुनर सिखाया !!
अंतहीन होती हैं इंसान की महत्वाकांक्षाएं
न सुविधाएं थीं न साधन थे
वे रखते थे खुद से ही अपेक्षाएं !
तभी तो मेरे पूर्वजों को जीवंत रखती थीं
उनकी स्वयं की विशेषताएं !!
आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों की कहानी मेरी ज़ुबानी !
सिर्फ श्राद्धों में ही क्यों याद करें हम,
आज भी जिंदा हैं वो हमारी स्मृतियों में हम सबके बीच
"एक मधुर याद बनकर"
इतिहास गवाह है सदियों से
हर लम्हा रहता था जिनके आंचल में मृदुल वसंत
बेशक छूट गये वो दामन
रश्तों में खूबसूरती हो
या हों रिश्ते खूबसूरत
चेहरे की मुस्कुराहट में अपनेपन की खुशबू थी
स-स्नेह स्पंदन भरा था हृदय में
अगर याद करो कभी फुर्सत में
उन दिव्य आत्माओं का निश्छल प्रेम महसूस करोगे नस-नस में !!
सिर्फ श्राद्धों में ही क्यों याद करें हम
जिनकी हम पहचान हैं
आज भी जिंदा हैं वो हमारी स्मृतियों में हम सबके बीच
"एक मधुर याद बनकर" !!
आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों की कहानी मेरी ज़ुबानी !
उन दिव्य आत्माओं ने जिंदगी की जब शुरुआत करी थी,
असंख्य मुश्किलें पहाड़ बनकर सम्मुख खड़ी थीं
न कोई सुविधा न ही साधन थे
न किसी की प्रेरणा और न ही कोई प्रेरक था !!
जीवन यापन कैसे हो ?
प्रश्न एक था
उत्तर भी एक
"प्रश्नचिन्ह" ?
आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों की कहानी मेरी ज़ुबानी !
याद है मुझको खूबसूरत हरा-भरा हिमालय की श्रृंखलाओं के आंचल में बसा छोटा सा प्यारा सा गांव
देवदार के पेड़ों ने जिसे आज भी अपने आंचल में सुरक्षित रखा है !
रहते थे मेरे पूर्वज जहां
बच्चों का बचपन महकता था वहां,
खुली हवा में खुशबू घुली थी
चहकते थे जहां चिड़ियों के संग
रिमझिम बारिश की बूंदों तले
सौंदर्य भरे बदन खिलते थे फूलों के संग !
आधुनिक संसाधनों का नामोनिशान नहीं था
न बिजली थी न सड़कें थीं
न ही स्वच्छ जल के नल थे,
स्कूल भी इक्का दुक्का कोसों मील की दूरी पर थे
फिर भी मेरे पूर्वज न जाने कैसे घर में खुशनुमा माहौल रख पाते हर पल थे !
रास्ते कठिन थे, हौसले बुलंद थे
कर्मठता की पहचान थे वो
चंद पौराणिक संसाधनों में सिमटा पूरा जीवन था 'सकारात्मक आदतों' से प्रतिकूल वातावरण को
भी 'अनुकूल सु-अवसरों' में परिवर्तित करने का दम रखते थे !!
आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों/पितरों (purvajon/pitron) की कहानी मेरी ज़ुबानी !
छोटे- छोटे लकड़ी-मिट्टी के बने घरों में चंद ज़रूरत की चीजें रखते थे...........
ए.सी. कूलर, गैस नहीं थे चूल्हे पर खाना पकता था.........
पिज़ा था न बर्गर था,
घी-शक्कर, मक्खन नमक लगाकर मर्यादा एवं संस्कारों की घनी छांव में मिल बैठकर सब सुकून की रोटी खाते थे !
दिन-भर की कड़ी मेहनत के बाद रात को गहरी नींद सो जाते थे !!
आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों की कहानी मेरी ज़ुबानी !
कर्मठ सीधे-सच्चे लोग थे वो न चेहरों पर मुखौटे थे !
अदम्य साहस, अटल संकल्प के मालिक थे,
दुनियादारी में सिर ऊंचा करके इज्ज़त से जीने का जज्बा रखते थे !
भोली-भाली सूरत थी दिल के बिल्कुल सच्चे थे,
छल-कपट, ईर्ष्या, द्वेश से न दूर-दूर का नाता था,
आ जाएं घर पर मेहमान अगर तो दिल से स्वागत करते थे !
खुद्दारी, वफादारी, प्रतिभा, विश्वास,
आव-भगत का अंदाज सभी को भाता था !
मरुस्थल, बंजर ज़मीन को ख़ून-पसीने से सींचकर सोना उपजाने का हुनर उन्हीं को आता था !!
आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों की कहानी मेरी ज़ुबानी !
सिर्फ श्राद्धों में ही क्यों याद करें हम,
आज भी जिंदा हैं वो हमारी स्मृतियों में हम सबके बीच
"एक मधुर याद बनकर"
घर बदले, परिवार बदले, सात्विक भोजन, संस्कृति बदल गई !
चेतन-अवचेतन मन के किसी कोर में आज भी तरोताजा महसूस करते हैं नसीहत उनकी,
मेहनतकश इंसान थे जो जिनकी हम संतानें हैं !!
दुःख की घड़ियां हों या हों लम्हे खुशियों के,
आंखों के समंदर में समेट लेते थे हर पल को बड़ी ही सहजता से !
घरों के दरवाजे छोटे थे तो क्या,
भावनाओं के महल से भर-भर मुट्ठी खुशियों की बारिश करते थे !
विघ्न-विपत्ती जब भी आती मुंह से न उफ़ कहते थे !
हुनरमंद इंसान थे,
बुलंद हौसलों के मालिक थे,
प्रखर सूरमा बनकर/धीरज रखकर कांटों में भी अपनी राह बनाते थे !!
आओ आज सुनाती हूं मैं हमारे पूर्वजों/पितरों (purvajon/पितरों) की कहानी मेरी ज़ुबानी !
सिर्फ श्राद्धों में ही क्यों याद करें हम,
आज भी जिंदा हैं वो हमारी स्मृतियों में हम सबके बीच
"एक मधुर याद बनकर"
दिन बदले युग बदले,
बदल गया ज़माना फिर भी,
आज भी हमारे पूर्वज जिंदा हैं कहीं न कहीं हम सब में ..................
हमारी बोल-चाल में, हमारे व्यवहार में,
हमारे हाव-भाव में, हमारे संस्कारों में,
हमारे विचारों में, गांव के गलियारों में,
खेतों में खलिहानों में, हरे-भरे पेड़ों की ठंडी-ठंडी छांव में....................
सिर्फ श्राद्धों में ही क्यों याद करें हम,
आज भी जिंदा हैं वो हमारी स्मृतियों में हम सबके बीच "एक मधुर याद बनकर"
गौरव से जीना 'स्वाभिमान' था जिनका
आशीर्वाद है उनका हमपर
'गर्व ' से आज मैं कहती हूं
हम उनकी संतानें हैं
हम उनकी संतानें हैं !!
🙏 भावभीनी श्रद्धांजलि मेरे पूर्वजों/पितरों के नाम 🙏

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