रक्षाबंधन 2021 कब है? रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ पौराणिक एवं प्रचलित कथाएं | Raksha bandhan kab, kyun aur kaise manaya jata hai? Mythological stories about Raksha bandhan
इस बार यानिकि 2021 में रक्षाबंधन का त्योहार 22 अगस्त, श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाएगा। कोविड-19 (Covid-19) महामारी के चलते इस बार भी रक्षाबंधन का त्योहार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गाइड लाइन्स को ध्यान में रखकर ही मनाया जाएगा।
वज़ोबिआना के इस लेख में मुख्य रूप सेे निम्न पहलुओं पर फ़ोकस किया गया है:
रक्षाबंधन का त्योहार कब, कैसे और क्यों मनाया जाता है? इसका महत्व क्या है? रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ पौराणिक एवं प्रचलित कथाएं: Raksha bandhan kab, kyun aur kaise manaya jata hai? Some Mythological stories about Rakshabandhan:-
हिंदु संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार बहन-भाई के अटूट एवं पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना गया है। वास्तव में यह त्योहार एक दूसरे की रक्षा करने और रक्षा करवाने का पर्व है। रक्षाबंधन का यह पवित्र त्योहार हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें बहनें भाई के माथे पर विधी अनुसार तिलक लगाकर दाहिने हाथ की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं और भाई की स्वस्थ/निरोगी काया, दीर्घायु एवं कामयाबी के लिए भगवान जी से प्रार्थना करती हैं। कलाई में बांधा जाने वाला रक्षासूत्र /thread (धागा ) कच्चे सूत जैसे धागे से लेकर रंगीन कलावा, रेशमी धागा या सोने और चांदी से निर्मित खूबसूरत या साधारण सा दिखने वाला ब्रेस्लैट/bracelet भी हो सकता है। हर बहन अपने भाई के लिए अपनी इच्छा व श्रद्धा के अनुसार किसी भी सस्ते या मंहगे धागे का प्रयोग कर सकती है। वैसे तो यह पर्व भाई-बहन का है लेकिन चूंकि यह त्योहार पवित्र रिश्ते का द्योतक है इसलिए हमारे समाज में कई बार कुछ प्रतिष्ठित रिश्ते/पद जैसे पंडित, गुरु, नेता या पिता-पुत्री का संबंध इत्यादि रिश्तों में भी छोटी लड़कियों के द्वारा राखी बांधने का प्रचलन है। हिंदु मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन के त्योहार का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व है क्योंकि यह पवित्र त्योहार भाई-बहन के रिश्तों को और भी ज्यादा मजबूत एवं प्रगाढ़ बना देता है।
बहन जब भाई को राखी बांध कर उसके लिए दीर्घायु एवं मंगलमय भविष्य की कामना करती है तो भाई भी ताउम्र अपनी बहन की सुरक्षा का संकल्प लेता है और उसे यथायोग्य उपहार भी देता है। इस दौरान शहरों में सभी बाजार, दुकानें भिन्न-भिन्न प्रकार के उपहारों से सजे होते हैं। हर तरफ खुशनुमा हलचल एवं खुशी का माहौल होता है। परिवारों में एक दूसरे को मिठाई बांटकर/खिलाकर खुशी का इज़हार किया जाता है।
रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ पौराणिक एवं प्रचलित कथाएं:
हिंदु संस्कृति में रक्षाबंधन से संबंधित अनेकों पौराणिक एवं प्रचलित कथाओं का संग्रह देखने को मिलता है। यहां हम उन्हीं में से कुछ कहानियों का उल्लेख करेंगे:
1) युधिष्ठिर-श्री कृष्ण संवाद लघुकथा :
युधिष्ठिर ने एक बार श्री कृष्ण से आग्रह किया कि उसे रक्षाबंधन से संबंधित वह कथा सुनाएं जिसके प्रभाव से असुर बाधा और सर्व दुखों का नाश होता है। तब श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को यह कथा सुनाई :
एक बार असुरों और देवों में भयंकर युद्ध छिड़ गया, असुरों ने देवों को पराजित कर दिया। तब इंद्र देव सभी देवों को लेकर अमरावती चले गए। विजेता टीम असुरों के प्रमुख ने आकाश, पृथ्वी, पाताल यानिकि तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया। यह घोषणा भी कर दी कि कोई भी मनुष्य एवं देव इन्द्र देव की सभा में न जाएं और न ही तीनों लोकों में कोई धार्मिक अनुष्ठान करें क्योंकि अब से सभी देव एवं मनुष्य असुराधिपति के अधीन हैं और उसी की पूजा करेंगे।
सारे धार्मिक अनुष्ठान, पूजा अर्चना, यज्ञ, उत्सव इत्यादि सब बंद करवा दिए गए। दैवीय शक्तियां कम होने लगीं। धर्म का नाश और दैवीय शक्तियों को कम होता देख इंद्र देव देवगुरु बृहस्पति के पास गए और विनम्रता से अपनी समस्या उनके सामने रखकर उपाय के लिए आग्रह किया। तब देव गुरु बृहस्पति ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन देवों की रक्षा हेतु यज्ञ अनुष्ठान करवाया। यज्ञ के तुरंत बाद ही इंद्राणी ने अभिमंत्रित रक्षासूत्र इंद्र देव की दाहिनी कलाई में बांध दिया और असुरों से युद्ध करने हेतु युद्ध भूमि के लिए रवाना कर दिया। रक्षाबंधन के इस पवित्र सूत्र के प्रभाव से सभी असुर मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए और देवों की विजय का शंखनाद हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहीं से रक्षाबंधन की शुरुआत मानी जाती है। हिंदु पौराणिक, प्रचलित कथाओं में यह एक इकलौती कथा है जिसमें पत्नी ने अपने पति एवं पूरे देवलोक की विजय हेतु पति की दाहिनी कलाई में रक्षा सूत्र बांधा था।
2) राजा बलि और देवी लक्ष्मी की पौराणिक कथा :
कहा जाता है एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने लिए वरदान मान कर पाताल लोक में ही रोक लिया। अब देवी लक्ष्मी ने अपने पति विष्णु जी को देवलोक वापस लाने के लिए राजा बलि को भाई मानकर राखी बांध दी और उपहार स्वरूप अपने स्वामी को वापिस वैकुंठ धाम भेजने का आग्रह किया। मान्यता है कि राजा बलि ने लक्ष्मी जी का आग्रह स्वीकार कर रक्षासूत्र/रक्षाबंधन के बदले विष्णु जी को वापिस वैकुंठ धाम भेज दिया।
3) चितौड़गढ़ की महारानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं की रक्षाबंधन के संदर्भ में संक्षिप्त कथा :
जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चितौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया तो अपने राज्य की सुरक्षा हेतु महारानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी और अपनी एवं अपने राज्य की सुरक्षा के लिए मदद की गुहार लगाई। मुगल सम्राट हुमायूं रक्षाबंधन का महत्व जानता था और राखी मिलते ही महारानी कर्णावती का आग्रह स्वीकार कर ढेरों उपहार चितौड़गढ़ भेजे और महारानी को बहन का दर्जा देकर आश्वस्त किया कि वह उनकी और उनके राज्य की सुरक्षा हेतु चितौड़गढ़ ज़रूर आएगा। महारानी द्वारा भेजे गए रक्षासूत्र को धर्म से अलग रखते हुए हुमायूं ने अपनी कलाई में बांधा और अपने सैंकड़ों सैनिकों के साथ चितौड़गढ़ के लिए रवाना हो गया। सम्राट हुमायूं और महारानी कर्णावती की यह कहानी हमारे समाज में आज भी भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक मानी जाती है।
4) सूर्य पुत्र यम और पुत्री यमी (यमुना) की पौराणिक कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार यम और यमी (यमुना) सूर्य और पत्नी संज्ञा की जुड़वां संतानें थीं। भाई-बहन यम और यमी की यह प्रचलित कथा पौराणिक समय से चली आ रही है। रक्षाबंधन का पावन त्योहार भाई-बहन के पवित्र एवं निश्छल रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि यम लंबे समय से अपनी बहन यमी से नहीं मिले थे जिस वजह से यमी बहुत दुखी हुई। यमी ने गंगा मैया से आग्रह किया कि वे इस बात की सूचना उनके भाई यम तक पहुंचा दें। जिससे उनका भाई मिलने आ सके। गंगा मैया ने जैसे ही यमी (यमुना) का संदेश यम तक पहुंचाया भाई यम बहुत खुश होकर तुरंत ही बहन यमी से मिलने आ गए। यमी भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई और अपने भाई का खूब आदर-सत्कार किया। विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर भाई यम को खिलाए। बहन का अपने लिए इतना स्नेह देखकर यम खुशी से भावविभोर हो गए और यमी को मनचाहा वरदान मांगने को कहा। तब यमी ने वरदान में भाई से मांगा कि वे अपनी बहन से मिलने जल्दी-जल्दी आया करें। यह सुनकर यम ने घनिष्ठ प्रसन्नता का अनुभव किया और बहन यमी (यमुना) को अमर हो जाने का वरदान दे दिया। भाई-बहन के इस अटूट एवं पवित्र रिश्ते को भी रक्षाबंधन के पावन त्योहार से जोड़ा जाता है।
5) श्री कृष्ण और द्रौपदी की पौराणिक कथा :
कहा जाता है एक बार श्री कृष्ण के हाथ में चोट लग गई और ख़ून बहने लगा। द्रौपदी पास खड़ी
थी जैसे ही उसने देखा कि कृष्ण जी के हाथ से खून बह रहा है उसने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर कृष्ण जी के हाथ में बांध दिया और ख़ून बहने से रूक गया। पौराणिक कथाओं में श्री कृष्ण और द्रौपदी के इस पवित्र रिश्ते को भी रक्षाबंधन से जोड़ा गया है।
महाभारत में जब युधिष्ठिर ने चौसर गेम में अपनी पत्नी द्रौपदी को दाव पर लगाया और गेम हार गया तब दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन से कहा कि द्रौपदी को इसी समय भरे दरबर में ला कर सबके सामने उसका चीरहरण किया जाए। दुशासन भाई की आज्ञा पाकर द्रौपदी को बालों से घसीटते हुए भरे दरबार में ले आया और उसका चीरहरण करने लगा। तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी के बदन पर लिपटी साड़ी का आकार बढा दिया। दुशासन साड़ी को जितना खींचता था साड़ी का आकार उतना ही बढ़ जाता था। दुष्ट दुशासन जब साड़ी खींचते-खींचते थक गया तो यह कहने पर मजबूर हो गया कि - नारी की ये साड़ी है या साड़ी की ये नारी है।
रविन्द्र नाथ टैगोर ने अपने एक संदेश में कहा था कि रक्षासूत्र /राखी मानव जीवन अथवा मानवता की रक्षा हेतु बहुत ही सुन्दर संदेश है। रक्षाबंधन के माध्यम से हम एक-दूसरे की रक्षा करने का प्रण लें सकते हैं। कहा जाता है इसके लिए उन्होंने बंगाल में एक महोत्सव का आयोजन भी करवाया था जिसमें एक दूसरे की रक्षा हेतु रक्षासूत्र भी बांधे गए थे।
अब तो हिंदुस्तान में प्रकृति के संरक्षण हेतु पेड़ों को राखी बांधने की परंपरा चल पड़ी है। कोविड-19 महामारी के चलते साल 2020में बहुत से लोगों ने पेड़ों को राखी बांध कर प्रकृति के प्रति प्यार को दर्शाया है जो कि अत्यंत प्रशंसनीय है। उपहार स्वरूप पेड़ भी भरपूर मात्रा में आक्सीजन देकर संपूर्ण मानव जाति को जीवनदान देने में अहम भूमिका निभाते हैं।

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