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बच्चों को बड़ों की इज्ज़त करना सिखाएं bacchon ko badon ki ijjat karna sikhayein

                                           bacchon ko badon ki ijjat karna sikhayein 
बच्चों को बड़ों की इज्ज़त करना सिखाएं:  बच्चे पेरेंट्स के सबसे बड़े फॉलोअर्स होते हैं जिन्हें देखकर और उनका अनुसरण कर वे बड़े होते हैं। बच्चा जब बहुत छोटा होता है बोल भी नहीं पाता, मां को देखते ही तेज-तेज हाथ पैर चलाने शुरू कर देता है क्योंकि उसे एहसास हो जाता है कि वह उसे गोद में उठा कर प्यार करेंगी इस का एहसास मां को भी हो जाता है और वह बच्चे की भावना की इज्ज़त करते हुए उसे गोद में उठा कर प्यार करती है। एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने की शुरुआत वास्तव में यहीं से हो जाती है।
बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, वह सब सीखता है जो उसके आसपास हो रहा होता है। ऐसे में कई बार पेरेंट्स शिकायत करते हैं कि वह बड़ों की इज्जत नहीं करता। इस लेख में लेखिका ने यह बताने की कोशिश की है कि दुनिया में ऐसी कोई पुस्तक नहीं लिखी गई जिसे पढ़कर बच्चा बड़ों की इज्ज़त करने लगे। इज्ज़त करना एक पारिवारिक माहौल/प्रोसैस है जिसे बच्चा बड़ों के अनुसरण में रहकर उनकी देखरेख में बेहतर सीखता है। 
अतः पेरेंट्स निम्न कुछ बातों पर अवश्य ध्यान दें:

1)  बच्चों को इज्ज़त करने के महत्त्व का एहसास दिलाएं:
बचपन से ही बच्चों को अच्छे संस्कार देना व बड़ों की इज्ज़त करने के महत्त्व को सिखाना माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इसकी शुरूआत स्वयं पेरेंट्स से ही होती है वे अपने माता-पिता, घर के बड़े बुजुर्गो की सेवा कैसे करते हैं, उनसे बातचीत कैसे करते हैं, कैसे उनकी पौष्टिकता और स्वच्छता का ध्यान रखते हैं बच्चे सब नोटिस करते हैं। बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं बचपन से ही माता-पिता उन्हें जो भी आकार देना चाहें वे उसी दिशा में बढ़ना शुरू कर देते हैं। घर का पूरा माहौल कैसा है इसका असर बच्चों के मन-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ता है। घर के बड़े या माता-पिता घर में जो भी करते हैं जैसे एक दूसरे से बातचीत करने का तरीका, एक दूसरे का ख्याल रखना, कौन सी बात पर किस तरह से प्रतिक्रिया करना इत्यादि हर चीज़ बच्चों के कोमल मन को प्रभावित करती है। अगर घर में बूढ़े माता-पिता हैं तो पेरेंट्स बच्चों को बताएं कि अब उनके दादा-दादी बूढ़े हो गए हैं ऐसे कई काम हैं जो वे स्वयं नहीं कर सकते ऐसे में हमारा फ़र्ज बनता है कि हम उनकी हैल्प करें, उन्हें भरपूर सम्मान दें, पास बैठ कर बातें करें इत्यादि। पेरेंट्स के मुंह से ऐसी बातें सुनकर बच्चे मन से बड़ों की इज्ज़त करने के महत्त्व को समझेंगे।

2)  ईश्वर में आस्था जगाएं:
आप किसी भी धर्म या कल्चर को मानते हों बच्चे को अपने साथ बिठाकर कुछ देर प्रेयर करना जरुर सिखाएं। बच्चे को समझाएं कि कुछ देर पूजा करने या मैडिटेशन करने से हमारा मन शांत व अपने काम के प्रति फ़ोक्सड रहता है।

3)  शेयरिंग (sharing) सिखाएं:
बच्चे को अपनी चीजें जैसे ट्वाएस (toys), बुक्स, चौकलेट्स (chocolates)  इत्यादि सिबलिंग्स और फ्रैंड्स के साथ शेयर करना सिखाएं इससे उनके मन में एक दूसरे के लिए अपनापन और इज्ज़त की भावना जागृत होगी।

4)  दूसरों की मदद (help) करना सिखाएं:
बच्चों को बचपन से ही एक दूसरे की मदद करना सिखाएं। घर के छोटे-मोटे कामों में जैसे पानी की बोतल (bottle) फ्रिज में रखना या निकालना, प्लेट्स उठा कर वॉशिंग के लिए रख कर आना इत्यादि में पेरेंट्स बच्चों की हैल्प ले सकते हैं और इन सब के लिए उन्हें थैंक्स कहना कभी न भूलें इससे बच्चे एक दूसरे की मदद करने के साथ-साथ इज्ज़त करना भी सीख जाते हैं।

5)  पेरेंट्स फोन पर किसी की बुराई न करें, झूठ न बोलें:
माता-पिता अक्सर बच्चों को सिखाते हैं कि हमें किसी को भी कभी बुरा नहीं बोलना चाहिए और न ही कभी झूठ बोलना चाहिए। अतः जब भी उनके सामने फोन पर बात करें तो किसी की न तो बुराई करें और न ही कोई झूठ बोलें क्योंकि बच्चे हमेशा आपको औबजर्व (observe) करते हैं ऐसे में यदि उन्हें लगेगा कि आपने कोई झूठ बोला तो वे दिल से आपकी इज्ज़त नहीं कर पाएंगे।

6)  बच्चों को जिम्मेदारी (responsibility) सौंपें:
 बच्चों को समय-समय पर कोई ऐसी जिम्मेदारी सौंपें जिसे वे आसानी से कर सकते हैं। यदि उनसे ग़लती हो जाए तो सबके सामने डांटें नहीं प्यार से अकेले में समझाएं इससे वे जिम्मेदारी निभाना और इज्ज़त करना दोनों सीख जाएंगे।

7)  बच्चों को अपने साथ ले जा कर अनाथाश्रम (orphanage) व वृद्धाश्रम (old age home)  दिखाएं:

बच्चों को बड़ों की इज्ज़त करना सिखाएं

पेरेंट्स बच्चों को अनाथाश्रम व वृद्धाश्रम विज़िट करवाएं उन्हें बताएं कि जिन बच्चों के माता-पिता नहीं होते ऐसे बच्चों के लिए अनाथाश्रम बने होते हैं और उन्हें कोई अच्छी आदतें सिखाने वाला नहीं होता, खाने की अपनी choice नहीं होती जो मिलता है चुपचाप बिना आनाकानी किए खा लेते हैं। इनके पास खेलने के लिए मनपसंद toys भी नहीं होते। माता-पिता बच्चों को बताएं कि आपके पास कुछ  toys ऐसे हैं जिनसे आप अब नहीं खेलते उन्हें लाकर इन बच्चों में बांट सकते हैं। कभी भी बच्चों के साथ जबरदस्ती न करें उन्हें स्वयं सोचने दें।  वृद्धाश्रम जा कर बताएं कि जिन लोगों के अपने बच्चे नहीं होते या जो बच्चे अपने माता-पिता की सेवा ऐसे समय में नहीं कर सकते जब उन्हें बच्चों की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, ऐसे माता-पिता वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो सरासर निंदनीय है ग़लत है। ऐसे बच्चों की समाज कभी इज्ज़त नहीं करता। यह सब देखकर और सुनकर बच्चे सही और ग़लत में फर्क महसूस करते हैं और  बड़ों की इज्ज़त करने के साथ-साथ उज्जवल भविष्य और खुशहाल समाज के निर्माण की ओर अपना पहला कदम उठा लेते हैं।

8)  बच्चों को रेस्पैक्टिड (respected) फ़ील कराएं:
पेरेंट्स बच्चों को बड़ों की इज्ज़त करना सिखाएं और साथ ही बच्चों को भी रेस्पैक्टिड फ़ील कराएं। हम चाहते हैं कि हमारा बच्चा शांति से हमारी बात सुने, उसका व्यवहार सराहनीय हो, बड़ा होकर एक जिम्मेदार व आत्मनिर्भर नागरिक बने तो पहले हमें वैसा बनना पड़ेगा। क्योंकि बच्चे वही करेंगे जो माता-पिता करते हैं। जब भी बच्चा बड़ों की इज्ज़त करता है तो उसे एप्रिशिएट (appreciate) ज़रूर करें और विषय (topic) के हिसाब से थैंक्यु व सॉरी भी ज़रूर कहें इससे बच्चा कॉन्फिडेंट व respected feel करता है।

9)  माता-पिता स्वयं को अनुशासित करें:
माता-पिता सबसे पहले स्वयं को अनुशासित करें अपना व्यवहार वैसा रखें जैसा बच्चों का चाहते हैं क्योंकि बच्चे आपको बहुत ही क्लोज़ली फॉलो करते हैं। यदि माता-पिता का बच्चों की उपस्थिति में बात करने का तरीका रफ़ होगा तो वे भी वैसे ही बात करने लग जाएंगे जो पेरेंट्स के लिए टैंशन का कारण हो सकता है।

10)  बच्चे की कोई भी बात नज़र अंदाज़ न करें:
बात छोटी हो या बड़ी पेरेंट्स कभी भी बच्चे की कोई बात नज़र अंदाज़ न करें। उदाहरण के लिए यदि आपको लगता है कि बच्चे ने किसी के  साथ मिसबिहेव/बदतमीजी की है तो उसे सबके सामने डांटने फटकारने न लग जाएं, इस समय अपने ऊपर  संयम रखें, कुछ देर बाद अकेले में बुलाकर समझाएं कि ऐसा करना अच्छे बच्चों की निशानी नहीं होती अगर उसने दुबारा ऐसा किया तो सब उसे गंदा बच्चा समझेंगे, उसका कोई दोस्त नहीं बनेगा और मैं भी बात नहीं करूंगी। यह सब सुनकर बच्चा जरूर realize करेगा कि उसने ग़लती की है।

11)  घर में खुशनुमा माहौल बनाएं अपनी बात खुलकर सबके सामने रखें:
बच्चे का बिहेवियर कैसा है, सबके साथ कैसे इंटरैक्ट व रिएक्ट करता है यह सब उसे घर में ही सीखने को मिलता है अतः अच्छाई-बुराई दोनों के लिए पेरेंट्स जिम्मेदार हैं। घर में खुशनुमा माहौल बनाएं ताकि प्रत्येक सदस्य अपनी बात खुलकर सबके सामने रख सके, बच्चे की हर बात सहजता और ध्यान से सुनें, उसे अहमियत दें, एहसास दिलाएं कि जो भी कहेगा उसे डांट नहीं पड़ेगी तभी वह अपनी बात खुलकर/निडरता से सब के सामने रख पाएग।

स्मरण रहे घर का वातावरण कैसा है, पेरेंट्स अपने माता-पिता से किस तरह बात करते हैं, घर में मेहमान आने पर उनसे किस तरह इंटरैक्ट किया जाता है बच्चा सब ऑवज़र्व (observe) करता रहता है अतः माता-पिता बच्चों को जैसा बनाना चाहते हैं उसी के अनुरूप घर का माहौल बनाएं।  समाज में इज्ज़त से जीने के लिए बच्चों को बड़ों की इज्ज़त करना सिखाएं।

Parenting Tips In Hindi Writer लेखिका: पिंकी राय शर्मा  



  

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