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मन की बात बच्चों के साथ: बच्चों को लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक कैसे बनाएं?

बच्चे माता-पिता की सबसे बड़ी धरोहर होते हैं। अतः उनका कर्त्तव्य है कि बचपन से ही उनकी ऐसी परवरिश करें और लोक व्यवहार की शिक्षा दें ताकि बड़े होकर वे मजबूत, आत्मविश्वासी, साहसी एवं संपूर्ण प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक बनकर समाज को ग्रेट ऊंचाइयों की ओर ले जाने में सक्षम हों। यह तभी संभव होगा जब पेरेंट्स अपने बच्चों रुपि पूंजी का निवेश सकारात्मक तरीके से सही जगह करेंगे। हमारे बच्चे भी हमारी बैंक में जमा धनराशि की तरह ही होते हैं यदि उचित जगह इन्वेस्ट (investment) नहीं किया तो बढ़ने की बजाय कम होना शुरू हो जाती है। 
'मन की बात बच्चों के साथ' (mann ki baat bachhon ke saath) नामक प्रस्तुत लेख में लेखिका ने यह बताने की भरपूर कोशिश की है कि पेरेंट्स अपने बच्चों को लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक कैसे बनाएं ताकि वे बड़े होकर समाज को ग्रेट हाईट्स की ओर ले जाने में अपना भरपूर योगदान देने में सक्षम हों। घर के बड़े-बुजुर्गों और पेरेंट्स का मकसद होना चाहिए कि बच्चों को परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढ़ालना सिखाएं। सच्ची शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य होता है धैर्य के साथ अपने दैनिक व्यवहार में सहनशीलता लाना और अपने अंदर सद्भावना का विकास करना। इससे बच्चों के व्यक्तित्व में निरंतर निखार आएगा और वे वक्त के साथ-साथ समाज को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में अपना भरपूर योगदान देने में मुख्य भूमिका निभाएंगे।

बच्चों को लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक बनाने के महत्त्वपूर्ण 5 तरीके:

1. माता-पिता बच्चों के साथ किया गया वादा (promise) पूरा करें:
बचपन में बच्चों के अंदर नई-नई चीजें सीखने की इच्छा अत्यंत तीव्र होती है। माता-पिता कई बार बच्चों से जब कोई नया कार्य शुरू करवाते हैं या फिर कभी-कभी अपना पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें किसी काम में व्यस्त करने की कोशिश करते हैं तो उन से कई प्रकार के प्रौमिस कर देते हैं और बाद में उसे ज्यादा अहमियत न दे कर भूल जाते हैं लेकिन बच्चे ऐसी बातें बिल्कुल नहीं भूलते। उदाहरण के तौर पर जैसा कि हम सब जानते हैं एक किसान अपने खेतों में जिस चीज का बीज बोया करता है पौधा भी वही अंकुरित होता है। ठीक उसी तरह हमारे बच्चे जो कुछ घर में या अपने आसपास होता हुआ देखते हैं उसी पर बड़ी ही निर्भीकतापूर्वक और गहराई से अमल करना शुरू कर देते हैं। माता-पिता यदि अपने द्वारा किए गए वादों को भूल जाते हैं या किसी कारण वश प्रौमिस पूरा नहीं कर पाते तो बच्चे भी किसी बात को या अपने दोस्तों से किया गया वादा पूरा करने में सीरियसनेस नहीं दिखाएंगे। यही वह समय है जब वे लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की पहचान बनाने में पहली सीढ़ी चढ़ने की कोशिश कर रहे होते हैं। उनके बातचीत के तरीके में व स्वभाव में नकारात्मक परिवर्तन आने लगता है। माता-पिता समझ ही नहीं पाते कि बच्चे ऐसा क्यों कर रहे हैं। उन्हें चाहिए कि बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात बड़े ही ध्यान से सुनें और अपने द्वारा किए गए वादों को निभाने की भी पूरी कोशिश करें, लेकिन यदि किसी कारणवश वादा पूरा नहीं कर पाएं तो बच्चों को कारण ज़रूर बताएं ताकि उनके मन में नकारात्मक विचार न पनपने पाएं। अपना वादा पूरा करके माता-पिता बच्चों का दिल आसानी से जीत सकते हैं। सकारात्मक तरीके से की गई बच्चों की परवरिश बड़े होने पर उनके व्यवहार में नज़र आएगी। बच्चे जैसे-जैसे समाज में लोगों के संपर्क में आएंगे तो वे भी अपने द्वारा किए गए वादों और अपने द्वारा कही गई हर बात को महत्त्वपूर्ण तरीके से पूरा करने की कोशिश करेंगे। उनके इस लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की सराहना पूरे समाज में की जाएगी। इस प्रकार की सकारात्मक सोच एवं व्यवहार से वे बड़े होकर समाज को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में समर्थ होंगे।

2. माता-पिता बच्चों को अहमियत दें:
हर माता-पिता जब मन की बात बच्चों के साथ (mann ki baat bachhon ke saath) करते हैं तो उनके मन में एक ही बात होती है कि बच्चों को लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक कैसे बनाएं जिससे वे समाज में इज्ज़त की जिंदगी जीएं, अपना और अपने परिवार का नाम रौशन करें। पेरेंट्स को चाहिए कि सार्वजनिक रूप से बच्चों की छोटी से छोटी बात ध्यान से सुनें और पूरी बात सुनने के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें। घर में ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करें जिसमें बच्चे बिना डरे अपने मन की हर बात बेझिझक माता-पिता को बता सकें। यह तभी संभव है जब पेरेंट्स अत्यंत सहनशील हों और बिना गुस्सा किए नम्र व्यवहार से बच्चे की हर बात सुनने की क्षमता रखते हों। बच्चों की हर बात जब माता-पिता द्वारा सहजता से सुनी जाती है और उन्हें अहमियत दी जाती है  तो वे स्पैशल फ़ील करते हैं। उनका यही रवैया बड़े होने पर समाज में लोगों का दिल जीत लेता है। वे बड़ी ही आसानी से नए दोस्त बना लेते हैं, अपने हर रिश्ते को आसानी से निभा लेते हैं और नए-नए लोगों से जुड़ते चले जाते हैं। लोगों का दिल जीतने और लोक व्यवहार की अद्भुत कला इन बच्चों में कूट-कूट कर भरी होती है। बड़े होकर यही बच्चे समाज में अत्यंत लोकप्रिय एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक बन जाते हैं।

3. माता-पिता स्वयं की केयर (care) करें:
अक्सर देखा गया है कि बच्चों की परवरिश करते-करते माता-पिता अपनी केयर करना भूल जाते हैं। उन्हें लगता है कि अब वे उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गए हैं जहां स्वयं से ज्यादा बच्चों की देखभाल जरूरी है, उनकी यह सोच सरासर ग़लत है। पेरेंट्स को बच्चों के साथ-साथ अपनी सेहत का भी जैसे समय से सोना-जागना, योगासन करना, सुबह-शाम सैर करना, पौष्टिक आहार लेना इत्यादि का भरपूर ध्यान रखना चाहिए। यह मत भूलिए कि आपके बच्चे आपकी हर बात औबज़र्व (observe) कर रहे हैं। आपका स्वयं के प्रति रवैया कैसा है, किस तरह आप अपने आप को ट्रीट कर रहे हो बच्चे हर चीज़ देख रहे हैं। यदि आप बच्चों के साथ-साथ अपनी सेहत का भी उतनी ही अच्छी तरह ध्यान रख रहे हों तो बच्चों के दीमाग में भी यह बात घर कर जाएगी कि हमें अपने साथ-साथ दूसरों का और दूसरों के साथ-साथ अपना ख्याल रखना भी उतना ही जरूरी है। अतः आपको बच्चों के सामने एक बेहतरीन मिसाल बनना है जिससे वे बड़े होकर समाज में दूसरों के काम आ सकें और आपका उदाहरण दे कर समाज में प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें।

4. बच्चों की हर एक्टिविटी में उनके साथ जुड़ें: मन की बात बच्चों के साथ (mann ki baat bachhon ke saath) में बच्चों को लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक बनाने में माता-पिता समाज में पहली सीढ़ी की भूमिका अदा करते हैं। उन्हें चाहिए कि बच्चों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए उनकी हर एक्टिविटी में उनके साथ जुड़ें। बच्चों की हर छोटी जीत पर उन्हें प्रोत्साहित करें क्योंकि प्रशंसा से मानसिक चेतना का विकास होता है। बच्चों को हर मुसीबत में साहस से काम लेने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें बताएं कि सामाजिक व्यवहार मित्रता एवं दोस्ती से चलते हैं। आप जब बच्चों की हर छोटी-बड़ी एक्टिविटी में उनके साथ जुड़ते हैं चाहे वह बातचीत से रीलेटिड़ हो, बच्चों की मनपसंद वीडियो गेम हो, उनका फेवरेट टीवी शो हो या कोई भी गेम हो हमेशा उनके साथ जुड़कर उन्हें एहसास दिलाएं कि जब आप छोटे थे तो आपको भी वही गेम्स पसंद थीं इससे बच्चे आपके और नजदीक आते जायेंगे और मन की हर बात आपके सामने कहने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाएंगे। बच्चों को सच्चाई एवं ईमानदारी के मार्ग पर चलाना, उनमें नैतिक गुणों का विकास करना, उनको सुरक्षा एवं स्नेह का एहसास दिलाना, उनके अंदर आत्मसम्मान व आत्मविश्वास जागृत करना माता-पिता का कर्तव्य है ताकि वे समाज में आगे चलकर प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक बन सकें।

5. बच्चों के मन में मेहनत के लिए उत्सुकता जागृत करें:
मन की बात बच्चों के साथ जब माता-पिता करते हैं तो बचपन से ही उन्हें कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करें, उनके जिज्ञासापूर्ण विचारों एवं सुझावों का सम्मान करें। उन्हें अपने बारे में स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए प्रेरित करें। प्रेरणादायक कहानियां सुनाएं इससे बच्चे अपने आप को कहानी के किरदार की जगह रख कर धीरे-धीरे हर काम में रुचि लेने लग जाते हैं। माता-पिता अपने बच्चों की इच्छा एवं ऊर्जा को पहचानें और उनकी क्षमता के अनुसार ही सही दिशा में मार्गदर्शन करें इससे उनके मन में कड़ी मेहनत के साथ  सकारात्मक दृष्टिकोण व सद्भावना का विकास होगा।

मन की बात बच्चों के साथ में माता-पिता ही समाज में बच्चों को लोक व्यवहार एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे समाज में माता-पिता को ही बच्चों का प्रथम गुरु माना गया है। हम सब के जीवन में 'मां' और 'गुरु' का महत्वपूर्ण स्थान है। 'मां' जन्म देती है और 'मां' से ग्रहण की गई सकारात्मक शिक्षा सारी उम्र संस्कारों के रूप में बच्चों के साथ रहती है।  'गुरु' के द्वारा दी गई 'शिक्षा' हमें सिखाती है कि  जीवन कैसे जीया जाए।  हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी ने भी मन की बात में बच्चों को संबोधित करते हुए कहा था कि सही रूप से दी गई शिक्षा बच्चों को जीवन जीने की कला सिखाती है। अतः बच्चे समाज में होने वाली किसी भी घटना को किस दृष्टिकोण से देखते हैं यह सब उनको दी जाने वाली शिक्षा पर निर्भर करता है।



लेखिका: पिंकी राय शर्मा  


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