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ज़िद्दी बच्चे को कैसे समझाएं | Ziddi bacche ko kaise samjhayein

                                     ज़िद्दी बच्चे को कैसे समझाएं, Ziddi bacche ko kaise samjhayein

ज़्यादातर पेरेंट्स यही सोचकर परेशान रहते हैं कि ज़िद्दी बच्चे को कैसे समझाएं। बच्चे का थोड़ी बहुत ज़िद करना आम बात है लेकिन यही ज़िद अगर हद से बढ़ जाए तो माता-पिता के लिए चुनौती बन जाती है। बच्चे को समझना और समझाना मुश्किल हो जाता है। पेरेंट्स जो करने को कहेंगे वह उसका उल्टा करने की कोशिश करेगा। उदाहरण के लिए यदि आप कहोगे खाना खा लो तो वह कहेगा नहीं उसे सोना है या वीडियो गेम खेलना है कहने का मतलब बच्चे को जो कहा जाए वह उसका उल्टा करने की कोशिश करेगा या फिर बात को सुनकर अनसुनी कर देगा। ऐसे बच्चे घर में माता-पिता के लिए और स्कूल में टीचर्स के लिए सिरदर्द का कारण बन जाते हैं। आए दिन क्लास टीचर की शिकायत आती है कि बच्चा बात नहीं सुनता उसे जो करने को कहा जाता है उसका उल्टा करता है या फिर कुछ नहीं करता। घर में भी सबको परेशानी में डालने जैसा माहौल पैदा करता है। हर नामुमकिन काम को करना चाहता है या ज़िद करके करवाना चाहता है। घर के किसी नियम को नहीं मानता, गुस्से से बात करता है। हर बार स्वयं को सही और दूसरों को ग़लत साबित करने की कोशिश करता है। ध्यान आकर्षित करने के लिए मूर्खतापूर्ण हरकतें करता है।

अगर आप अपने बच्चे का व्यवहार सुधारना चाहते है तो इधर विजिट जिये: https://www.wazobiana.in/2020/06/kaise-sudhare-bache-ka-vyavhar.html

 वज़ोबियाना के इस आर्टिकल में लेखिका ने बच्चों की मन: स्थिति/psychology को ध्यान में रखते हुए मुख्यत: निम्न बातों पर फ़ोकस करने की कोशिश की है:
1) ज़िद क्या होती है:
2) बच्चा ज़िद क्यों करता है: 
3) उसके कारण क्या हैं:
4)  ज़िद्दी बच्चे को कैसे समझाएं।

ज़िद क्या होती है?

कभी-कभी छोटी-छोटी चीजों की डिमांड करना या किसी बात का न मानना साधारण सी बात है अक्सर बच्चे ये सब करते हैं लेकिन यदि यही बातें रोज़ की आदत बन जाएं, बच्चा बड़ों की कोई बात नहीं सुने, अपनी हर बात मनवाने की कोशिश करे,  बात-बात पर चीखना-चिल्लाना शुरू कर दे, घर में मेहमान आने पर उनके सामने अपनी बात मनवाने की भरपूर कोशिश करे, बात न मानने पर घर का सामान उठा कर फेंकना शुरू कर दे इत्यादि तो उसे ही ज़िद कहते हैं ऐसे बच्चे माता-पिता के लिए बहुत बड़ी परेशानी का कारण बन जाते हैं। कई बार पेरेंट्स भी गुस्से में आकर बच्चे को भला बुरा कहने लगते हैं और मारना पीटना शुरू कर देते हैं। ऐसा करना सरासर निंदनीय है, ग़लत है। हर बच्चा अपने-आप में खास होता है। बच्चे बहुत भोले होते हैं वे स्वयं नहीं जानते कि माता-पिता उन्हें डांट क्यों रहे है या उनके साथ मारपीट क्यों कर रहे हैं। 
असल में पेरेंट्स को यह समझने की सख्त जरूरत है कि उनका बच्चा ज़िद क्यों कर रहा है उसकी समस्या क्या है और समस्या का समाधान यदि ढूंढ़ लें तो उसे संभालने और समझाने में आसानी होगी।

बच्चा ज़िद क्यों करता है?

बच्चे के ज़िद्दी होने का कोई एक कारण नहीं बल्कि कई हो सकते हैं जिनकी वजह से माता-पिता हमेशा परेशान रहते हैं। यहां उन्ही कारणों को उजागर किया गया है जिन्हें जानकर माता-पिता अपने ज़िद्दी बच्चों को संभालने और समझाने में कामयाब हो जाएं। 

बच्चे के ज़िद करने के प्रमुख कारण:

1. मानसिक विकास:

हर बच्चा अलग होता है। कुछ बच्चों का मानसिक विकास समय से पहले बड़ी ही तेजी से हो जाता है ऐसे में उन्हें लगता है कि वे कुछ काम बिना किसी की सहायता लिए स्वयं कर सकते हैं और करते भी हैं। ऐसे में पेरेंट्स यदि उन्हें छोटा या नासमझ कहकर अपने एक्सपीरियंस (experience) के हिसाब से उनके काम में रोक-टोक करने लगते हैं तो उनकी सैल्फ ईगो हर्ट होती है वे बात मानने से इंकार कर देते हैं और पेरेंट्स सोचते हैं कि बच्चे उनकी बात नहीं सुन रहे। ऐसे में माता-पिता अपनी बात मनवाने की कोशिश करेंगे और बच्चे अपनी ज़िद पर अड़े रहेंगे और दोनों तरफ तनाव बढ़ता जाएगा। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों के मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए कौन सी बातें कहनी हैं और कौन सी नहीं का चयन बहुत ही समझदारी से करें।

2. बच्चे को अटैनशन (attention) न मिलना:
अक्सर देखा गया है कि पेरेंट्स जब भी कोई महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हों, फ़ोन पर बात कर रहे हों या घर पर मेहमान आए हों तो बच्चे को लगता है कि उसके माता-पिता उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहे अतः उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए फ़ालतू की ज़िद करने लग जाता है।

3. बच्चे से ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीदें:
जरूरत से ज्यादा उम्मीद करना भी बच्चे की जिद का कारण बन सकता है। मान लीजिए बच्चा पूरी मेहनत करने के बाद स्कूल में ऐवरेज चल रहा है और माता-पिता ये उम्मीद करें कि वह 95% स्कोर करे तो यह नहीं हो सकता।  माता-पिता का यह रवैया उसे ज़िद करने पर मजबूर कर देगा।

4. मानसिक तनाव:
आजकल प्रतियोगिता के इस दौर में बच्चों के ऊपर एक दूसरे से आगे निकलने का दबाव/प्रैशर बढ़ता ही जा रहा है। बढ़ते हुए तनाव की वजह से बच्चा मानसिक तौर पर कमज़ोर हो जाता है ऐसे में उसका दिन प्रतिदिन ज़िद्दी होना स्वाभाविक है। हमेशा माता-पिता की यही मानसिक परेशानी रहती है कि ज़िद्दी बच्चे को कैसे समझाएं। उन्हें चाहिए कि बच्चों को पढ़ाई में ज्यादा नंबर लाने के लिए प्रैशराइज़ न करें। कोई भी इंसान सिर्फ अच्छे मार्क्स लाकर जिंदगी में कामयाबी हासिल नहीं करता।

5. माता-पिता का व्यवहार:
 माता-पिता का नकारात्मक व्यवहार जैसे बच्चे की हर बात को लेकर हस्तक्षेप करना, रोकना- टोकना, गलती हो जाने पर प्यार से समझाने की वजाय उन्हें डांटना-फटकारना या चिल्ला कर बात करना भी बच्चे को ज़िद्दीपन की ओर ले जाता है। माता-पिता के व्यवहार का सीधा असर बच्चे के दीमाग पर पड़ता है अंतः उसकी हर बात ध्यान से सुनें और अहमियत दें।

6. गर्भावस्था में मादक पदार्थों का सेवन:
एक रिसर्च के मुताबिक यदि मां गर्भावस्था में मादक पदार्थो का सेवन करती है तो भी बच्चा ज़िद्दी हो सकता है।

7. अनुवांशिक कारण:
शोधकर्ताओं के अनुसार बच्चे में ज़िद्दीपन अनुवांशिक भी हो सकता है। यदि माता-पिता या दादा-दादी में से कोई ज़िद्दी हो तो बच्चे में भी ज़िद्दीपन आ सकता है।

ज़िद्दी बच्चे को कैसे समझाएं?

ज़िद्दी बच्चे को सुधारना व समझाना माता-पिता की बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है। इनको समझाने के लिए पहले स्वयं इनकी मानसिकता को समझें, क्योंकि हर बच्चा अलग होता है। इस लेख में ऐसे बच्चों को समझाने के कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर आप अपने मासूमों को समझने और समझाने में कामयाब हो सकते हो:

1. बच्चे को नज़र-अंदाज़ न करें:
माता-पिता भूलकर भी बच्चे को नज़र-अंदाज़ न करें और न ही उसे कभी अकेला छोड़ें। अगर वह चुप है तो प्यार से उसकी चुप्पी का कारण जानने की कोशिश करें। उस की हर बात ध्यान से सुनें। घर के सारे काम छोड़ कर उन्हें अहमियत दें और बच्चे की पूरी बात सुनने के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया दें।

2. चिल्ला कर बात न करें:
बच्चा यदि आपकी कोई बात सुनकर अनसुनी कर रहा है या बात नहीं मान रहा है तो ऐसे में कभी भी उससे चिल्ला कर बात न करें और न ही किसी काम को करने के लिए मजबूर करें। 

3. बच्चे को नकारात्मक प्रतिक्रिया करने पर मजबूर न करें:
जब भी माता-पिता बच्चे को कोई ऐसा कार्य करने को कहेंगे जो वह नहीं करना चाहता उदाहरण के लिए आपने उस के लिए खाना परोसा है और वह खाना न खाने के बहाने ढूंढ रहा है, वीडियो गेम उठा कर खेलना शुरू कर देता है तो स्वाभाविक है आपको गुस्सा आएगा। ऐसे में स्वयं पर नियंत्रण रखें और बिना गुस्सा किए बच्चे से खाना न खाने का कारण जानने की कोशिश करें। हो सकता है उसने पहले ही कुछ खा लिया हो या फिर भूख न हो। अब अगर आप उसे जबरदस्ती खाने के लिए फोर्स करोगे तो वह नकारात्मक प्रतिक्रिया करने पर जैसे चिल्ला कर बात करने के लिए मजबूर हो जाएगा।

4. घर का माहौल खुशनुमा रखें:
जहां तक हो सके पेरेंट्स को चाहिए कि घर का माहौल हमेशा खुशनुमा रखने की कोशिश करें। बच्चे में ज़िद्दीपन कम करने के लिए, उसे जो पसंद है वही करें, उसे ज्यादा से ज्यादा अपने साथ बातचीत में इन्वौल्व करें इससे जो भी उसके अंदर चल रहा है आपके साथ शेयर करेगा और धीरे-धीरे उसका ज़िद्दीपन कम होता जाएगा।

5. बच्चे को किसी काम के लिए फोर्स न करें:
माता-पिता बच्चे को किसी भी काम के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं लेकिन उसे फोर्स बिल्कुल न करें। जैसे मान लो बच्चे के इग्ज़ैमस (Exams) आने वाले हैं, बच्चा ज़िद पकड़ कर बैठा है कि नहीं पढ़ूंगा तो ऐसे में पेरेंट्स आपा न खोएं उसे प्यार से गले लगाएं, कॉन्फिडेंस में लेकर धीरे-धीरे एक कहानी के द्वारा न पढ़ने से होने वाले नुकसान से अवगत कराएं। ऐसे में बच्चा कहानी के किरदार में स्वयं को रखेगा और न पढ़ने की ज़िद छोड़ कर पढ़ने के लिए प्रेरित हो सकता है।

6. अच्छा करने पर बच्चे की प्रशंसा करें:
ज़िदी बच्चे को पेरेंट्स कैसे समझाएं इस के लिए जब भी वह कोई अच्छा काम करे तो उसकी प्रशंसा ज़रूर करें। भूल कर भी उसके सामने किसी से फ़ोन पर उसकी बुराई न करें। जब आप उसके द्वारा किए गए कार्यों की तारीफ करते हैं तो इससे बच्चे को और अच्छा करने की प्रेरणा (motivation) मिलती है और वह हर काम मन लगाकर पूरे उत्साह से करने की पूरी कोशिश करता है।

7. ग़लत व्यवहार से बच्चे को अवगत कराएं:
जब भी बच्चा कुछ ग़लत करता है जैसे बड़ों से बदतमीजी से बात करता है, गुस्सा करता है या बात नहीं सुनता इत्यादि ऐसे में माता-पिता उसे प्यार से समझाएं कि अगर उसने दुबारा ऐसा किया तो सब उसे गंदा बच्चा समझेंगे और कोई उसे प्यार नहीं करेगा, उसके दोस्त भी उसके साथ नहीं खेलेंगे। इससे बच्चे को अपनी ग़लती का एहसास होगा और वह दुबारा ग़लत व्यवहार करने से पहले एक बार सोचेगा ज़रूर।

8. हर ज़िद पूरी न करें:
बच्चे का क्या वह तो हर चीज के लिए ज़िद करेगा। माता-पिता यदि फाइनेंशियली साउंड हैं तब भी बच्चे की हर ज़िद पूरी न करें। उसे वही लेकर दें जिसकी उसे जरूरत है, नहीं तो वह हर दिन एक नई फरमाइश करेगा। उसे पैसे की कीमत से भी समय-समय पर अवगत कराते रहें।

9. बच्चे को दोस्तों के साथ बाहर घूमने भेजें: 
पेरेंट्स यह सोच कर परेशान हो जाते हैं कि वे अपने ज़िद्दी बच्चे को कैसे समझाएं। उन्हें चाहिए 
बच्चे को कभी-कभी दोस्तों के साथ बाहर घूमने ज़रूर भेजें। इससे उसकी मानसिकता में बदलाव के साथ व्यवहार में भी परिवर्तन आएगा।

10. बच्चे को बड़ों के सानिध्य में रखें:
यदि माता-पिता दोनों वर्किंग हों तो अकेला रहने के कारण भी बच्चे में ज़िद्दीपन आ जाता है। घर में दादा-दादी हैं तो बच्चे को उनके सानिध्य में रखें इससे उसे नैतिक मूल्यों का ज्ञान होगा और स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगेगा। कई बार बच्चा घर में अकेले होने की वजह से भी दिन प्रतिदिन ज़िद्दी होता जाता है। अतः उसे बड़ों के साथ घुल-मिल कर रहने का मौका दें, उनसे वह अच्छी बातों के साथ बड़ों की इज्ज़त करना भी सीख जाएगा और उसमें ज़िद्दीपन भी धीरे-धीरे कम होने लगेगा।

11. पेरेंट्स बच्चे को बाहर घूमाने लेकर जाएं:
 बच्चा चाहता है कि वह हर समय अपने माता-पिता के साथ रहे लेकिन उनकी व्यस्तता की वजह से हमेशा ऐसा मुमकिन नहीं होता। ऐसे हालात में वे बच्चे को प्यार से अपनी परिस्थितियों से अवगत कराएं और समय निकाल कर कभी कभी उसे बाहर घूमाने अवश्य ले कर जाएं। ज़्यादातर बच्चे घूमने के बहुत शौकीन होते हैं। जब भी वे बाहर से घूमकर आते हैं तो अपने दोस्तों के साथ अपने एक्सपीरियंस (experience) सांझा करने में उन्हें खुशी की अनुभूति होती है और धीरे-धीरे उनके ज़िद्दीपन में भी कभी आनी शुरू हो जाती है।

ध्यान रहे ज्यादातर बच्चों में ज़िद्दीपन/चिड़चिड़ापन घर के खराब वातावरण की वजह से, माता-पिता के व्यवहार की वजह से, घर के लोगों में आपसी लड़ाई-झगड़ों की वजह से, बच्चों की तरफ़ पूरा ध्यान न दे पाने की वजह से आ सकता है। ऐसे में बच्चा सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ज़िद का सहारा ले लेता है। यदि माता-पिता वक्त रहते उसे नहीं संभाल पाए तो उनकी मानसिक शांति और बच्चे का भविष्य बर्बाद होना तय है। इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ माता-पिता ही होंगे।


Kids Hindi Author लेखिका: पिंकी राय शर्मा  





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