इस दुनिया में सिर्फ मनुष्य के रूप में जन्म ले लेना ही काफी नहीं है बल्कि देश/दुनिया को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए आवश्यक है इंसान का सही दिशा में शिक्षित होना। देश और दुनिया में आज के समय में शिक्षा ही मात्र एक ऐसा माध्यम है जिससे मनुष्य रूपी प्राणी की गिनती इंसानों में की जाती है। गुरु और शिष्य का संबंध सदियों से चला आ रहा है। उदाहरण के तौर पर जिस तरह जौहरी को हीरे की पहचान होती है और उसके सही रूप से तराशे जाने पर ही कई गुणा कीमत तय होती है ठीक उसी तरह एक योग्य गुरु अपने ज्ञान से एक साधारण से दिखने वाले बच्चे को भी सही दिशा में शिक्षित कर असाधारण प्रतिभा का मालिक बनाने की योग्यता रखता है। यदि हम कहें कि शिक्षा के बिना मनुष्य जीवन पशु समान है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। आज़ादी से पहले जब भारत ब्रिटिश गुलामी से जूझ रहा था तो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारतियों के एक बड़े वर्ग को शिक्षित करने की इच्छुक नहीं थी लेकिन भारत को लूटने और व्यापार करने के लिए उन्हें एक ऐसा शिक्षित वर्ग चाहिए था जिनके माध्यम से अंग्रेजी सरकार व जनता के बीच आसानी से भाषा व विचारों का आदान-प्रदान किया जा सके। वज़ोबियाना के इस लेख में लेखिका ने बड़े ही खूबसूरत तरीके से गुरु-शिष्य एवं शिक्षा के महत्व का वर्णन किया है। आर्टिकल/लेख में मुख्य रूप सेे तीन पहलुओं पर चर्चा की गई है: 1) शिक्षक दिवस किसे कहते हैं?
2) टीचर्स डे/शिक्षक दिवस 5सितंबर को क्यों मनाते है?
3) शिक्षक की शिक्षा व शिष्य के प्रति क्या भूमिका होती है।
1) शिक्षक दिवस/टीचर्स डे किसे कहते हैं:
देश विदेश में शिक्षक दिवस/टीचर्स डे एक ऐसा दिन है जो रिस्पैक्टफुली संपूर्ण रूप से शिक्षक/गुरु को समर्पित होता है। एक कामयाब शिक्षक को नेशन बिल्डर की उपाधि दी गई है। शिक्षक जिस तरह से अपने शिष्यों को शिक्षित करता है उस राष्ट्र का निर्माण भी निश्चित रूप से उसी दिशा में होता है। अतः आवश्यक है कि आधुनिक समाज में हमारे बच्चों को इस तरह से शिक्षित किया जाए जिससे वे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना बिना डरे दृढ़तापूर्वक कर सकें और संपूर्ण राष्ट्र को सकारात्मक तरीके से कामयाबी की बुलंदियों की ओर ले जाने में सक्षम हों।
वास्तव में शिक्षक दिवस/टीचर्स डे शिष्यों द्वारा गुरुओं के प्रति सम्मान और श्रृद्धा के प्रतीक के रूप में देश-विदेश में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
2) टीचर्स डे/शिक्षक दिवस सितंबर पांच को ही क्यों मनाते है:
हमारे देश भारत वर्ष में पांच सितंबर को प्रति वर्ष टीचर्स डे/शिक्षक दिवस बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय टीचर्स डे पांच ऑक्टुबर को मनाया जाता है। इस दिन कुछ देशों में अवकाश रहता है और कुछ देशों में हर रोज की तरह सभी शिक्षा संस्थान खुले रहते हैं। भारत ने पांच सितंबर का दिन इसलिए चुना क्योंकि इस दिन एक महान दार्शनिक, भारतीय संस्कृति के ज्ञाता, विख्यात राजनीतिज्ञ, आस्थावान हिंदु प्रचारक, प्रख्यात शिक्षक, स्वतंत भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति भारत रत्न से सम्मानित डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। इनका जन्म तमिलनाडु के तिरुवनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही ये एक अत्यंत मेधावी छात्र थे। स्वतंत्रता से पहले इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा सर की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इनकी महान दार्शनिक और शैक्षणिक योग्यताओं के लिए इन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद द्वारा सन् 1954 में भारत रत्न प्रदान किया गया।
शिक्षा के क्षेत्र में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अविस्मरणीय एवं अमूल्य योगदान की वजह से ही समस्त भारत में उनका जन्मदिन पांच सितंबर को शिक्षक दिवस/टीचर्स डे के रूप में प्रतिवर्ष बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। उनका मानना था कि अगर बच्चों को उचित तरीके से शिक्षित किया जाए तो समाज में पनपने वाली बुराइयों को स्वत: ही दूर किया जा सकता है।
कहा जाता है कि जब डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ प्रशंसक और शिष्यों ने उनके पास जाकर उनसे अनुरोध किया कि वे उनका जन्मदिन शिक्षक के रूप में मनाना चाहते हैं तो उन्होंने कहा था कि 'मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से मैं निश्चय ही अपने आप को गौरवान्वित महसूस करूंगा'। तब से ही उनका जन्मदिन पांच सितंबर को शिक्षक दिवस/टीचर्स डे के रूप में प्रतिवर्ष सम्मानपूर्वक बड़े ही हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जाता है।
3) शिक्षक की शिक्षा व शिष्य के प्रति भूमिका:
शिक्षक और शिष्य के खूबसूरत संबंधों की प्रक्रिया देश-दुनिया में सदियों से चली आ रही एक अविस्मरणीय परंपरा है। आदर्श शिक्षक/गुरु उसे माना गया है जिसके सानिध्य में रह कर एक आम इंसान सद्भावना, एकता, भाईचारा, त्याग, सहनशीलता, विश्वास इत्यादि के मार्ग पर पहले स्वयं चलकर अपने सकारात्मक व प्रभावशाली व्यक्तित्व से अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उसी दिशा/रास्ते पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता हो। हमारे समाज में बहुत से उदाहरण ऐसे हैं जिनमें गुरूओं द्वारा दी गई सकारात्मक व उचित शिक्षा हमारे सभ्य समाज को व्यक्तिगत एवं व्यावहारिक रूप से नई ऊंचाइयों की ओर ले जाने में कारगर साबित हुई है। सिख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब जी के पवित्र ग्रंथ में गुरु के ज्ञान का संपूर्ण प्रकाश भरा हुआ है। इस अभूतपूर्व महान ग्रंथ में ईश्वरीय वाणी का उल्लेख बड़ी ही खूबसूरती एवं प्रभावशाली तरीके से सुनहरे शब्दों में किया गया है। दसवें गुरु गुरुनानक गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि आज से गुरु ग्रंथ साहिब जी ही हमारे गुरु हैं। इस महान ग्रंथ में सिर्फ सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं हैं बल्कि अलग-अलग धर्मों की महान आत्माओं की वाणी को भी सम्मिलित किया गया है और इसमें यह भी बखूबी दर्शाया गया है कि प्रत्येक मनुष्य उसके मधुर व्यवहार और विनम्र स्वभाव के द्वारा हर किसी का हृदय जीतने की क्षमता रखता है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार हमारे धर्म ग्रंथों में अनेकों महान गुरु शिष्यों का वर्णन देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसी महान आत्माओं के गुरु परशुरामजी थे। परशुरामजी का जन्म तो ब्राह्मण कुल में हुआ था लेकिन इनका स्वभाव क्षत्रियों जैसा था। महाभारत के एक कथन के अनुसार जब दानवीर कर्ण परशुरामजी से शिक्षा प्राप्त करने गए तो उन्होंने अपना परिचय सूतपुत्र के नाम से करवाया था। एक बार परशुरामजी कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे तो उसी समय सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण को सांप ने काट लिया| उसे भयंकर दर्द होने लगा और शरीर से खून बहने लगा। क्योंकि गुरु परशुरामजी गोद में सो रहे थे उनकी नींद भंग न हो जाए इसलिए दर्द सहन करते रहे। जैसे ही परशुरामजी की नींद खुली उन्होंने देखा कर्ण भयंकर पीड़ा बर्दाश्त किए जा रहे थे लेकिन मुंह से उफ तक नहीं कर रहे थे। परशुरामजी तुरंत समझ गए कि यह सूतपुत्र नहीं हो सकता इसने झूठ बोल कर शिक्षा ग्रहण कर ली। अतः अत्यंत क्रोधित होकर परशुरामजी ने कर्ण को श्राप दे दिया कि उनके द्वारा सिखाई गई शस्त्र विद्या की जब भी उसे सबसे ज्यादा ज़रूरत होगी तो वह उसे भूल जाएगा और ऐसा ही हुआ। महाभारत में युद्ध के दौरान कर्ण झूठ बोल कर अर्जित की विद्या गुरु द्वारा दिए गए श्राप के कारण भूल गए और मृत्यु को प्राप्त हुए।
वास्तव में शिक्षक/गुरु वह है जिसके द्वारा दी गई शिक्षा या सुझाए गए मार्ग पर चलकर बिना किसी का दिल दुखाए या बिना किसी को चोट पहुंचाए जगत का कल्याण हो। हिंदु धर्म में गुरु का स्थान सर्वोपरि/सर्वश्रेष्ठ है। 'गु' का अर्थ है 'अंधकार' और 'रु' का अर्थ है 'रौशनी' अर्थात जो हमारे समाज, देश व संस्कारों को अंधकार से रौशनी की ओर ले कर जाएं उन्हें गुरु अथवा शिक्षक कहते हैं अतः उनके सम्मान में ही शिक्षक दिवस/टीचर्स डे मनाया जाता है।
गुरुरब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुरदेवो महेश्वर:
गुरुरसाक्षात परंब्रम्ह तस्मैश्री गुरुवे नम:!!
Very nice
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