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जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा: Covid-19 ke dauran kaise sampann hogi Jagannath Puri Rathyatra?


हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2022 में आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि यानिकि 01 जुलाई से 12 जुलाई तक कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच असंख्य श्रद्धालुओं के साथ श्रीरघुनाथ /जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का आयोजन किया जाएगा।
इस साल 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान जगन्नाथपुरी रथ यात्रा का आयोजन सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की गई गाइड लाइन्स को ध्यान में रखकर ही किया जाएगा। इसमें श्रधालुओं को शामिल करने की अनुमति नहीं दी गई है। यात्रा में केवल मंदिर में कार्यरत सेवक ही शामिल होंगे और उन्हें पार्टिसिपेशन से पहले अपना फ़ुली वैक्सिनेटिड सर्टिफिकेट/fully vaccinated certificate एवं कोरोना नैगेटिव रिपोर्ट दिखानी होगी।

हिंदु पंचांग के अनुसार इस वर्ष 2021में भी हमेशा की तरह जगन्नाथपुरी रथ यात्रा आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाएगी। इस बार रथ यात्रा 12जुलाई,  2021 से शुरू हो कर 20जुलाई , 2021 तक चलेगी।

वज़ोबिआना के इस लेख में जगन्नाथपुरी रथ यात्रा के निम्न पहलुओं को दर्शाया गया है:

1) जगन्नाथपुरी मंदिर का संक्षिप्त परिचय एवं ऐतिहासिक महत्व:
2) जगन्नाथपुरी मंदिर से जुड़ी पारंपरिक कथाएं:
3) रथ खींचने का अधिकार:
4) जगन्नाथपुरी मंदिर का आधुनिक व्याख्यान:

1) जगन्नाथपुरी मंदिर का संक्षिप्त परिचय एवं ऐतिहासिक महत्व: 

हिंदु मान्यता के अनुसार जगन्नाथ विष्णु जी के आठवें अवतार श्रीकृष्ण जी को समर्पित है। जगन्नाथ जी का यह आलौकित भव्य मंदिर उड़िसा के पुरी जिले के समुद्रितट पर विद्यमान है। रेलमार्ग द्वारा उड़िसा की राजधानी भुवनेश्वर से पवित्र नगरी पुरी तक का सफ़र लगभग एक घंटा पैंतालिस मिनट में तय किया जा सकता है। प्राचीन काल में उड़िसा उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। पुरी नगरी समुद्र तट पर स्थित होने की वजह से विदेशी व्यापार का आदान-प्रदान इन्हीं बंदरगाहों पर किया जाता था।

हिंदु धर्म के अनुसार पवित्र नगरी पुरी का अत्यंत महत्व है क्योंकि चार धामों में से एक जगन्नाथपुरी धाम माना गया है। यहां साल में एक बार रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। जिसमें मंदिर के तीनों प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को सुसज्जित रथों पर विराजमान कर भव्य यात्रा निकाली जाती है। कहा जाता है यात्रा निकालने से पहले इन तीनों को मंदिर के समीप बने एक मंड़प में ले जाया जाता है वहां उन्हें एक सौ आठ कलशों के माध्यम से स्नान कराया जाता है और फिर एक खास कक्ष में पंद्रह दिन तक रखा जाता है। इस कक्ष में कुछ ही मुख्य पुजारियों को जाने की अनुमति दी जाती है। पंद्रह दिन बाद जब इन्हें बाहर लाया जाता है और ये लोगों को दर्शन देते हैं तो इस उत्सव को नवयौवन उत्सव कहा जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ बहुत ही ख़ूबसूरत तरीके से सुसज्जित रथों पर विराजमान होकर भ्रमण के लिए निकल पड़ते हैं।

2) जगन्नाथपुरी मंदिर से जुड़ी पारंपरिक कथाएं: 

भगवान जगन्नाथ जी से संबंधित अनेकों कथाओं का वर्णन देखने को मिलता है। उन्हीं में से एक परंपरागत कहानी के अनुसार जगन्नाथ जी की इंद्रनील/नीलमणि से निर्मित भव्य मूर्ति एक वृक्ष के नीचे मिली थी और सौभाग्य वश उन्हीं दिनों मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को सपने में भी इसी मूर्ति के दर्शन हुए थे। कहते हैं सपने में मूर्ति देखने के बाद मालवा नरेश इंद्रद्युम्न ने घोर तपस्या की। तब उनके सपने में भगवान विष्णु आए और उन्हें बताया कि पुरी के समुद्रतट पर एक बड़ा लकड़ी का गट्ठा पड़ा है उसे लाकर उसी लकड़ी से इसी मूर्ति का निर्माण करवाएं। राजा समुद्र तट पर गया तो उसे वहां वैसा ही लकड़ी का गट्ठा पड़ा मिल गया। राजा उस गट्ठे को महल में ले आया। कहा जाता है उसी समय विश्वकर्मा बढ़ई का रूप धारण कर राजा के सामने आए और उस लकड़ी के गट्ठे से मूर्ति का निर्माण करने की राजा से पेशकश की। राजा मान गए। फिर राजा के सामने अपनी एक शर्त रखी कि वह एक महीने के अंदर बंद कमरे में रहकर मूर्ति बना देगा लेकिन उस दौरान कोई भी व्यक्ति कमरे के अंदर न आने पाए। राजा ने उसे अनुमति दे दी। महीने के अंतिम दिन जब अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई तो राजा ने सोचा शायद मूर्ति बनकर तैयार हो गई होगी और उत्सुकता वश राजा ने कमरा खोल दिया। अंदर देखा कि मूर्ति के हाथ नहीं बने थे और बढ़ई भी कमरे से गायब था। राजा को बहुत दुःख हुआ लेकिन चुंकि बढ़ई कमरे से गायब था इसलिए इसी को दैविक इच्छा मानकर मूर्ति की स्थापना करवा दी गई।

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार लगभग दसवीं शताब्दी के आसपास मंदिर के स्थान पर एक बौद्ध स्तूप हुआ करता था बाद में उसे श्री लंका पहुंचा दिया गया था और उसके बाद से जगन्नाथ पूजा-अर्चना सर्वमान्य हो गई थी।

मान्यता यह भी है कि महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को भारी मात्रा में सोना दान किया था और इच्छा जताई थी कि अब तक का सबसे मूल्यवान/कीमती कोहिनूर हीरा इस मंदिर को दान कर दिया जाना चाहिए लेकिन यह हो न सका क्योंकि तब तक ब्रिटिश सत्ता ने देश पर कब्जा करके कोहिनूर हीरे के साथ-साथ अनेकों शाही संपत्तियों पर भी कब्जा कर लिया था।

3) रथ खींचने का अधिकार: 


हमारा देश भारत त्योहारों का देश है। यहां हर त्योहार बड़ी ही श्रद्धा, धूमधाम एवं हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हिंदु मान्यताओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ वहां उपस्थित अनेकों श्रद्धालुओं द्वारा बड़ी ही श्रद्धा से खींचा जाता है। रथ खींचने के लिए जगन्नाथ पुरी धाम में लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जैसे कि हम सब प्रतिवर्ष देखते ही हैं। मान्यता है कि रथ को खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और इंसान जीवन-मरण के चक्र व्यूह से मुक्त हो जाता है लेकिन इस वर्ष जगन्नाथ रथ को खींचने का यह अद्भुत मौका आम श्रद्धालुओं को नहीं मिलेगा। मंदिर के सेवक ही गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए भगवान जगन्नाथ जी का रथ खींचेंगे क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान जगन्नाथपुरी रथ यात्रा का आयोजन तो किया जाएगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने श्रद्धालुओं पर रथ खींचने की रोक लगा दी है। यह सब प्रतिबंध हमारी सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखकर ही लगाए गए हैं। अतः हम सब का कर्तव्य है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन करें।

4) जगन्नाथ पुरी मंदिर का आधुनिक व्याख्यान:

आधुनिक समय में जगन्नाथ पुरी मंदिर की व्यस्तता सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों की वजह से काफी ज्यादा है। कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ जी की रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई है। इसी रसोई में भगवान जी को चढ़ाने के लिए महाप्रसाद तैयार किया जाता है। इस रसोई में लगभग छः सौ से अधिक रसोईए और उनके सहयोगी काम करते हैं।

भगवान जगन्नाथ पुरी मंदिर में गैर हिंदु श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित है। बौद्ध और जैन श्रद्धालु अपना भारतीय मूल का प्रमाण दिखा कर मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर की संस्था ने गैर भारतीय मूल के हिंदु भक्तगणों को भी मंदिर में प्रवेश व दर्शन करने की अनुमति दे दी है।

 लेखिका: पिंकी राय शर्मा



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